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दोहा सजल



दोहा सजल


आभा की मुस्कान में, है अति मीठा प्यार।

आभा रचती आ रही, अति सुंदर संसार।।


आभा प्रतिभा पुंज है, दिव्य ज्ञान की शान।

आभा कहती विश्व से , बन उत्तम परिवार।।


घनीभूत है लालिमा, आभा की पहचान।

अद्भुत आभा ही सरल, सारे जग का सार।।


सुंदर सोच निवास गृह,है आभा की चाह।

बुद्धिमान में दीखती, आभा की ललकार।।


भावुक मन की खोज में, आभा विचरत नित्य।

हर भावुक इंसान पर, आभा का अधिकार।।


आभा पावन हृदय का, मत पूछो कुछ हाल।

आभामय दिखता सहज, ईश्वरमय दरबार।।


आभा की शोभा विरल,यह है सबकी चाह।

आभा उसको चाहती, जिसे प्राणि से प्यार।।


आभा खोजत प्रेम को, इसी रंग से नेह।

सदा घृणास्पद दनुज को, देती यह दुत्कार।।


चेहरे पर रहता सहज, इंद्रधनुष का भाव।

सप्तरंग अनुपम चमक, आभा का मनहार।।


स्वच्छ-शुद्ध-पावन-सजल, है आभा की देह।

अधरों को है चूमती, शीतल सुखद बयार।।


आभा की शुचिता परम, दिव्य अलौकिक गंध।

आभा करती विश्व का, सर्वोत्तम विस्तार। 


स्वर्ग लोक की यह परी,उड़ती गगन अनंत।

मानवता के जिस्म-मन, पर करती उपकार।।


जीव मात्र की रक्षिका, आभा व्यापक भाव।

व्यापकता के अर्थ का,करती नित्य प्रचार।।


आभा से ही प्यार जो, करता वह अति सभ्य।

आभा धार्मिक संहिता, मोहक शिष्टाचार ।।


इसी अलौकिक वस्तु से, जो करता है प्रेम ।

बनता आभावान वह, पाता शुभ संस्कार।।


आभा की प्रतिभा गढ़त, चमत्कार नेतृत्व।

सकल जगत में है बनत, आभा की सरकार।।




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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 05:02 PM

👍👍🌺

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